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Friday, August 16, 2013

एक विचित्र आजादी

  • जहा जीत के सबसे बड़े ''योद्धा'' का गुमनाम बना दिया गया
  • सम्पूर्ण स्वर्णिम इतिहास ''वामपंथियो'' की मदद से पलटा गया, आर्थिक मदद अंग्रेजो के लूटे हुए धन से ली गयी.
  • जिन्ना को जबरदस्ती ''पाकिस्तान'' दिया गया , जबकि 5-6 % मुस्लिम समुदाय इस बटवारे के पक्षधर थे ! 
  • उन अंग्रेजो की ''अंग्रेज़ी'' थाम ली जिसने हमको 200 साल लुटा , जिन अंग्रेजो ने नालन्दा जलाया , हमारे ज्ञान भंडार को अपने नाम से प्रकाशित किया ,
  • अंग्रेजो की कूटनीति के तहत, मुस्लिम हिन्दू विरोधी दंगे मात्र सत्ता के लिये जबरदस्ती करवाये गये , आज जनता दुसमन अंग्रेज़ को नही पाकिस्तान को मानते है ,,
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अब इस गुलामी दिवस की पूर्व संध्या के रूप में मनाऊ ,या 35 लाख हिन्दू सिक्खों के बलिदान दिवस के रूप में मनाऊ ?
1947 में , मुस्लिम समाज के भी निर्दोष लोग मारे गये , आजादी के नाम पर शुरु हुए दंगे आज तक जारी है , कभी असम कभी किस्तवाडा ,न्याय , समाधन किसी को नही मिला , ना ही आगे भी दिख रहा है , डर है , हिन्दू मुस्लिम के नाम पर मिली इस आजादी में, जल्दी ही कही कही पूरा देश ही ना जल जाये ! उधर , व्यापारी चीन भी नये सौदे , संभावना की तलाश में सीमा पर खड़ा है , बस इन यहूदियो , अंग्रेजो और रोम के जाल (इल्लुमिनाती) पर जनता की नजर ही नही है !!

महात्मा गांधी की हत्या के अभियुक्तों का एक समूह चित्र।

खड़े हुए : - शंकर किस्तैया, गोपाल गौड़से, मदनलाल पाहवा, दिगंबर बड़गे.
बैठे हुए: -  नारायण आप्टे, वीर सावरकर, नाथूराम गौड़से, विष्णु विष्णु करकरे
नाथूराम गोडसे पर मोहनदास करमचन्द गान्धी की हत्या के लिये अभियोग पंजाब उच्च न्यायालय में चलाया गया था। इसके अतिरिक्त उन पर १७ अन्य अभियोग भी चलाये गये। किन्तु इतिहासकारों के मतानुसार सत्ता में बैठे लोग भी गान्धी जी की हत्या के लिये उतने ही जिम्मेवार थे जितने कि नाथूराम गोडसे या उनके अन्य साथी। इस दृष्टि से यदि विचार किया जाये तो मदनलाल पाहवा को इस बात के लिये पुरस्कृत किया जाना चाहिये था ना कि दण्डित क्योंकि उसने तो हत्या-काण्ड से दस दिन पूर्व उसी स्थान पर बम फोडकर सरकार को सचेत किया था