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Wednesday, September 5, 2012

सूर्य- ज्योतिष -हम


सूर्य

खगोल -शास्त्र के अनुसार सूर्य हीलियम और हाइड्रोजन से निर्मित एक अग्निपिण्ड हैं , जो आकाश में स्थित अनंत आकाश गंगाओं में Spiral या मन्दाकिनी नामक एक आकाश गंगा के परिवार में स्थित 1 ½ खरब तारों में एक छोटा सा तारा मात्र हैं. सूर्य का डायमीटर 6 लाख मील हैं जो पृथ्वी से 110 गुना बड़ा हैं. सोलर फॅमिली में 9 ग्रह, ग्रहों के उपग्रह , अनगिनत asteriods , meteors , comets इत्यादि आते हैं.


सोलर -सिस्टम के समस्त घटक सूर्य के प्रबल आकर्षण शक्ति से जकड़े हुए उसकी परिक्रमा करते हैं. अपने इस पूरे परिवार को लेकर सूर्य खुद 200 किलोमीटर/सेकंड की रफ्तार से Spiral आकाश गंगा की परिक्रमा करता हैं . इस एक परिक्रमा में उसे 25 करोड़ वर्ष लगते हैं. सूर्य का तापमान लगभग 6,000-से- 60,000 सेन्टीग्रेड हैं.


सूर्य-पृथ्वी



पृथ्वी सूर्य की आकर्षण शक्ति से वशीभूत होकर उसकी परिक्रमा का रही हैं. सूर्य लगभग पृथ्वी से 9.38 लाख मील दूरी पर स्थित हैं. इतनी दूरी पर रहते हुए भी पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति का श्रेय उसे ही दिया जाता हैं. 30 किलोमीटर/ सेकंड की गति से चलते हुए पृथ्वी लगभग 365 ¼ दिनों में सूर्य की एक परिक्रमा करती है. सूर्य का आकर्षण बल पृथ्वी से 28 गुना अधिक हैं, अर्थात पृथ्वी पर यदि कसी वस्तु का भार 10 किलोग्राम हैं तो सूर्य पर उसका भार 280 किलोग्राम होगा. सूर्य के प्रकाश को पृथ्वी तक पहुँचने में 8 मिनट लगते हैं और यदि सूर्य पर कोई जोरदार विस्फोट होगा तो पृथ्वी तक उस ध्वनि को उसे आने में 14 साल लग जायेंगे. 


पृथ्वी का आकर चपटापन लिए हैं और उसकी भ्रमण कक्षा भी अंडाकार हैं . इसी विशेषता से शीत और ग्रीष्म ऋतुएँ आती हैं.


आधुनिक विज्ञान केवल सूर्य के प्रकाश,ताप और आणविक विकरण का कुछ अंश ही पता लगा पाया हैं. लेकिन यह सब उसके स्थूल गुण हैं जो किसी भी मानव निर्मित मशीन से प्राप्त किये जा सके हैं लेकिन सूर्य के अन्दर एक सूक्ष्म सत्ता भी उपस्थित रहती हैं जो जीवनी- शक्ति बन कर प्राणियों को उत्पन्न करने, पोषण करने और अभिवर्धन करने का कार्य करती हैं.


पृथ्वी का समस्त जीवन-क्रम सूर्य से ही चलता हैं. अगर सूर्य मिट जाये तो पृथ्वी से समस्त चर-अचर जीवों का अस्तित्व मात्र 3 दिनों में ही समाप्त हो जायेगा. सूर्य से ताप, विद्युत, और प्रकाश की अनवरत निकलने वाली तरंगें यदि पृथ्वी तक नहीं पहुंचे तो सर्वत्र नीरवता, स्तब्धता , परिलक्षित होगी. अणुओं की सक्रित्यता जो पदार्थों का अविर्भाव , अभिवर्धन एवं परिवर्तन करती हैं उसका कोई अस्तित्व नहीं होगा.


सूर्य के प्रकाश की सबसे छोटी इकाई फोटोन में विद्युत, ऊष्मा , और गति तीनों तत्व होते हैं. अतः यह जीवन की सबसे छोटी इकाई प्���ाण - तत्व का ही प्रतिनिधित्व करते हैं. सृष्ठी के आरंभ से पृथ्वी के वातावरण,प्राणियों,पदार्थों और ऋतुओं में जो भी परिवर्तन आये हैं वे सब सूर्य और पृथ्वी के मध्य चलने वाले विद्युत-चुम्बकीय अदान-प्रदान और प्रतिक्रियाओं से संभव हो पाएं हैं.

सूर्य की नवग्रहों में गिनती 


सूर्य सौर-मंडल में स्थित एक विशालकाय प्रकाश-पुंज तारा हैं जो निश्चित रूप से ग्रह की परिभाषा में नहीं आता हैं. ग्रह तो उसे कहते हैं जो हमारे सौर-मंडल के केंद्र में अवस्थित सूर्य की अपनी -अपनी कक्षा में रहकर परिक्रमा करतें हैं और उससे प्रकाश और ऊर्जा ग्रहण करते हैं, तथा उनमें अपना कोई ताप और तेज़ नहीं होता हैं.


लेकिन हम पृथ्वी निवासी पृथ्वी पर रह कर सूर्य सहित सभी ग्रहों से प्रभावित होतें हैं , अतः ज्योतिषशास्त्र में सूर्य के स्थान पर पृथ्वी को ही केंद्र मान कर , पृथ्वी को स्थिर मान कर , सूर्य को उसकी परिक्रमा करने वाला ग्रह मान लिया हैं.


यह ठीक उसी प्रकार हैं जैसे चलती हुई रेलगाड़ी में बैठ कर हम उसे [ रेलगाड़ी को ] स्थिर और उसके बाहर अगल-बगल के स्थिर पेड, पौधों और मकान इत्यादि को द्रृत गति से दौड़ते हुआ गतिशील देखते है. 


सूर्य- ज्योतिष -हम

सूर्य से निकलने वाली प्रकाश रश्मियों की सूक्ष्मतम इकाई - फोटोन-कई रंगों के अणुओं से बनी होती हैं. मानव शरीर की प्रकाश-आभा या औरा भी कई रंगों के अणुओं से मिलकर बनी होती हैं. 

सूर्य के प्रकाश की तरंगों का मनुष्य के औरा पर प्रतिक्षण प्रभाव पड़ता हैं . इसी प्रभाव के परिणाम स्वरुप औरा अपना रंग बदलता हैं. इन्ही प्रकाश अणुओं के प्रभाव से स्वाभाव, संस्कार, इच्छाएं,एवं क्रिया-शक्ति का निर्माण होता हैं.

प्रातः काल सूर्य की किरने तिरछी पड़ती हैं, मध्यं में सीधी पड़ती हैं एवं रात्रि में किरणों का आभाव होता हैं. इस प्रकार जिस समय बच्चे का जन्म होता हैं उस समय सूर्य से विकरित होने वाली तरंगों के अनुसार उसका स्वाभाव बनता हैं. अर्थात समय के अनुसार स्वाभाव बन जाता हैं.


ग्रीष्म ऋतू [ जब सूर्य वृष और मिथुन राशि में होता हैं] में, सूर्य की किरणें सीधी पड़ती हैं. हेमंत ऋतू [ जब सूर्य वृश्चिक और धनु राशि में होता हैं] में तिरछी पड्ती है . अतः इन ऋतुओं में सूर्य की रश्मि में उत्पन्न बालकों का स्वाभाव, शारीरिक , मानसिक स्थिति भिन्न-भिन्न होगी.


ध्रुव प्रकाश में प्रखर तीब्रता मार्च और सितम्बर [ चैत और अश्विन की नवरात्री] में देखि जाती हैं. इस समय पृथ्वी का अक्ष सूर्य के साथ उचित कोण पर होता हैं . धरती पर बीज बोने का यही समय प्रभावी होता हैं. साधक गण अधिकतर साधनों में सफलता भी इसी समय प्राप्त करते हैं. ऐसा सूर्य से निकालने वाली विशिष्ट विद्युत्-चुम्बकीय तरंगों के प्रभाव से होता हैं.

मानव शरीर में स्थित Endocrine glands जैसे Thyriod , Peanal , Adrenal , Pituitary आदि मष्तिष्क से उत्पन्न होने वाले विचारों को प्रभावित करते हैं. ये ग्रंथियां सूर्य से अपना सम्बन्ध स्थापित कर स्वयं को विशिष्ट प्रकाश किरणों से भर लेती है . जैसा प्रकाश अवशोषित होगा उसी प्रकार की विचार तरंगें मस्तिष्क में पैदा होंगी. उदाहरण के लिए जिस मानव की ग्रंथि लाल रंग के प्रकाश के कणों को प्रचुरता में ग्रहण करेगी उस मानव का स्वभाव उग्रता, वीरता और उत्तेजना से पूर्ण होगा.

आधुनिक भौतिक विज्ञान आज कल उन्हीं निष्कर्षों पर पहुँचने की कोशिश कर रहा हैं , जिस पर सदियों पहले भारतीय तत्त्ववेता और ज्योतिष के मर्मज्ञ पहुँच चुके थे. आज कल भौतिकविद भी स्वीकार करने लगे हैं की सौर-मंडल की गतिविधियाँ पृथ्वी के वातावरण और जैविक एवं मानवीय परिस्थियों पर प्रभाव डालती हैं

Tuesday, September 4, 2012

Father of computer programing

कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के जनक (Father of computer programing)

महर्षि पाणिनि के बारे में जाने -

पाणिनि (५०० पू) संस्कृत भाषा के सबसे बड़े वैयाकरण हुए हैं। इनका जन्म तत्कालीन उत्तर पश्चिम भारत के गांधार में हुआ था। इनके व्याकरण का नाम अष्टाध्यायी है जिसमें आठ अध्याय और लगभग चार सहस्र सूत्र हैं। संस्कृत भाषा को व्याकरण सम्मत रूप देने में पाणिनि का योगदान अतुलनीय माना जाता है। अष्टाध्यायी मात्र व्याकरण ग्रंथ नहीं है। इसमें प्रकारांतर से तत्कालीन भारतीय समाज का पूरा चित्र मिलता है। इनका जीवनकाल 520 460 ईसा पूर्व माना जाता है

एक शताब्दी से भी पहले प्रिसद्ध जर्मन भारतिवद मैक्स मूलर (१८२३-१९००) ने अपने साइंस आफ थाट ( Science of Thought) में कहा -
"मैं निर्भीकतापूर्वक कह सकता हूँ कि अंग्रेज़ी या लैटिन या ग्रीक में ऐसी संकल्पनाएँ नगण्य हैं जिन्हें संस्कृत धातुओं से व्युत्पन्न शब्दों से अभिव्यक्त न किया जा सके । इसके विपरीत मेरा विश्वास है कि 2,50,000 शब्द सम्मिलित माने जाने वाले अंग्रेज़ी शब्दकोश की सम्पूर्ण सम्पदा के स्पष्टीकरण हेतु वांछित धातुओं की संख्या, उचित सीमाओं में न्यूनीकृत पाणिनीय धातुओं से भी कम है । .... अंग्रेज़ी में ऐसा कोई वाक्य नहीं जिसके प्रत्येक शब्द का 800 धातुओं से एवं प्रत्येक विचार का पाणिनि द्वारा प्रदत्त सामग्री के सावधानीपूर्वक वेश्लेषण के बाद अविशष्ट 121 मौलिक संकल्पनाओं से सम्बन्ध निकाला न जा सके ।"
 
The M L B D News letter ( A monthly of indological bibliography) in April 1993, में महर्षि पाणिनि को first softwear man without hardwear घोषित किया है। जिसका मुख्य शीर्षक था " Sanskrit software for future hardware " जिसमे बताया गया " प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाने के तीन दशक की कोशिश करने के बाद, वैज्ञानिकों को एहसास हुआ कि कंप्यूटर प्रोग्रामिंग में भी हम 2600 साल पहले ही पराजित हो चुके है। हालाँकि उस समय इस तथ्य किस प्रकार और कहाँ उपयोग करते थे यह तो नहीं कह सकते, परआज भी दुनिया भर में कंप्यूटर वैज्ञानिक मानते है कि आधुनिक समय में संस्कृत व्याकरण सभी कंप्यूटर की समस्याओं को हल करने में सक्षम है।
 
व्याकरण के इस महनीय ग्रन्थ मे पाणिनि ने विभक्ति-प्रधान संस्कृत भाषा के 4000 सूत्र बहुत ही वैज्ञानिक और तर्कसिद्ध ढंग से संगृहीत हैं।
 
 NASA के वैज्ञानिक Mr.Rick Briggs.ने अमेरिका में कृत्रिम बुद्धिमत्ता और पाणिनी व्याकरण के बीच की शृंखला खोज की। प्राकृतिक भाषाओं को कंप्यूटर प्रोग्रामिंग के लिए अनुकूल बनाना बहुत मुस्किल कार्य था जब तक कि Mr.Rick Briggs. द्वारा संस्कृत के उपयोग की खोज न गयी। उसके बाद एक प्रोजेक्ट पर कई देशों के साथ करोड़ों डॉलर खर्च किये गये।
 
महर्षि पाणिनि शिव जी बड़े भक्त थे और उनकी कृपा से उन्हें महेश्वर सूत्र से ज्ञात हुआ जब शिव जी संध्या तांडव के समय उनके डमरू से निकली हुई ध्वनि से उन्होंने संस्कृत में वर्तिका नियम की रचना की थी।
 
पाणिनीय व्याकरण की महत्ता पर विद्वानों के विचार :-
  • "पाणिनीय व्याकरण मानवीय मष्तिष्क की सबसे बड़ी रचनाओं में से एक है" (लेनिन ग्राड के प्रोफेसर टी. शेरवात्सकी)।
  • "पाणिनीय व्याकरण की शैली अतिशय-प्रतिभापूर्ण है और इसके नियम अत्यन्त सतर्कता से बनाये गये हैं" (कोल ब्रुक)।
  • "संसार के व्याकरणों में पाणिनीय व्याकरण सर्वशिरोमणि है... यह मानवीय मष्तिष्क का अत्यन्त महत्त्वपूर्ण अविष्कार है" (सर डब्ल्यू. डब्ल्यू. हण्डर)।
  • "पाणिनीय व्याकरण उस मानव-मष्तिष्क की प्रतिभा का आश्चर्यतम नमूना है जिसे किसी दूसरे देश ने आज तक सामने नहीं रखा"। (प्रो. मोनियर विलियम्स)
।। जयतु संस्‍कृतम् । जयतु भारतम् ।।